Principal/School Head Message
शिक्षा ही जीवन है।
DINESH VISHNOI
Lecturer
Notice Board
-
भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है। भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं। सूत्रकाल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं। बौद्धकाल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया।
प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा का व्यवस्था ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया, जिस अनुपात में होना चाहिये था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियाँ व समस्याएँ हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है।
- ज्ञान, जीवन की तरह एक चक्र है। यह एक प्रश्न के साथ शुरू होता है जिसके लिए आप एक उत्तर चाहते हैं। अगला जवाब समझने और इसका विश्लेषण करने के लिए आता है जो तब आवश्यक कार्रवाई या आवेदन की ओर जाता है। यह बदले में एक और सवाल की ओर जाता है और चक्र इस प्रकार चलता है और बढ़ता है। हमारे स्कूल में, बच्चों की आजादी और अंतरिक्ष का सम्मान उन लोगों को खिलाने में सक्षम बनाने के लिए किया जाता है जो आत्म-खोज की प्रक्रिया के माध्यम से ज्ञान को देख और आत्मसात कर सकते हैं। इसका प्रयास बच्चे में ज्वलनशीलता की इस लौ को रखना है, ताकि ज्ञान की रोशनी उज्ज्वल हो जाए और चमक जाए। इस महान अभ्यास का नतीजा यह है कि छात्र विश्व इतिहास में एक निशान बनाने के लिए आगे बढ़ते हैं और उनकी सफलता और महिमा सभी भौगोलिक और सार्वभौमिक सीमाओं से आगे निकलती है। हमें हमारे द्वारा विकसित किए गए अद्भुत स्कूल और महान शिक्षा अनुभव और अवसरों पर गर्व है जो हम अपने छात्रों की पेशकश करते हैं। हमारा स्कूल पूरे बच्चे को विकसित करने वाले सभी छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। हम आपके बच्चे की सीखने की यात्रा को मार्गदर्शन और साझा करने के लिए तत्पर हैं और हमारे स्कूल समुदाय में आपकी भागीदारी और योगदान का स्वागत करते हैं।
भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है। भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं। सूत्रकाल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं। बौद्धकाल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया।
प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा का व्यवस्था ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया, जिस अनुपात में होना चाहिये था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियाँ व समस्याएँ हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है।
Our School Features
No School Features to show.
Our School Highlights
No School Photos to show.
Our School Statics
Enrolled Boys
203
Enrolled Girls
119
Working Staff
13